Monday, 7 March 2016

दिल्ली में मिथिला के लोगों ने निकाला पाग मार्च

नई दिल्ली, 28 फरवरी | मिथिलालोक संस्था की ओर से दिल्ली के आईटीओ स्थित राजेंद्र भवन में रविवार को 'पाग बचाउ अभियान' की औपचारिक शुरुआत की गई। इस मौके पर मिथिला के लोगों ने सिर पर पाग रखकर मार्च भी निकाला। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में मिथिला क्षेत्र के लोगों ने हिस्सेदारी की और पाग मार्च निकालकर एक मनोरम दृश्य प्रस्तुत किया। 


कार्यक्रम में मौजूद जनता दल-युनाइटेड (जदयू) के नेता एवं बिहार विधानसभा के पूर्व पार्षद संजय झा ने कहा कि इस अभियान से सीता की धरती मिथिला की समस्याओं का निदान निकलेगा।

सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश ज्ञानसुधा मिश्र ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम से मिथिला से बाहर मिथिला की एक सांस्कृतिक पहचान बनेगी और यह अच्छा प्रयास है।

मिथिलालोक के संस्थापक बीरबल झा ने कहा कि पाग मिथिला की सांस्कृतिक पहचान है, महाकवि विद्यापति की तस्वीरों में उनके सिर पर विराजित इस पाग को देखकर ही लोग समझ जाते हैं कि यह मिथिला से संबंधित है, सिर पर पाग पहनना मिथिला की सदियों पुरानी विरासत है, जिसे आज बचाने की जरूरत है।

टोपी और पगड़ी का मिश्रित रूप पाग बिहार के मिथिला क्षेत्र और नेपाल के तराई इलाकों में मैथिली भाषी ब्राह्मण व कर्ण कायस्थ जातियों में अमूमन मांगलिक अवसरों पर पहनने की परंपरा रही है।

मिथिलालोक संस्था मानती है कि पाग मिथिला की सम्मान और एकता का प्रतीक है, जिसे बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। इसे मात्र दो जातियों तक ही सीमित न रखकर सभी जातियों के मैथिलीभाषी लोग पाग पहनें। मैथिल समाज के सभी वर्गो को सम्मानित किया जाना और मैथिल की पहचान पाग को बरकरार रखना इस अभियान का उद्देश्य है।

भगवान श्रीराम की ससुराल मिथिला में जिसे पाग कहते हैं, उसे पंजाब में 'पग' और हिंदी भाषियों के बीच पगड़ी नाम से जाना जाता है।

मिथिलालोक सांस्कृतिक धरोहर 'पाग' को कायम रखने के लिए विशेष अभियान की शुरुआत कर रही है।

संस्था के अध्यक्ष डॉ. बीरबल झा ने 'पाग बचाउ अभियान' के साथ ही कई अन्य महत्वाकांक्षी योजनाओं की घोषणा की। उनका मानना है कि इससे मिथिला की अर्थव्यवस्था में व्यापक बदलाव आएगा और मिथिला क्षेत्र के लोग रोजगार से जुड़ सकेंगे।

उन्होंने कहा कि 'पाग सबों के लिए' संस्था का मिशन है, ताकि समाज में सभी तबकों को सम्मानपूर्वक जीने का अवसर मिले।

Saturday, 5 March 2016

SAVE THE PAAG CAMPAIGN: THE EVENT

Paag, an equivalent to cap, has been in vogue in all cultures of the world irrespective of caste creed and religion. Working as a head-gear, Mithila cap—Paag—dates back to pre-historic time when it was made of leaves of plants and the Nomad used to wear leaves to cover their bodies. Perhaps, Paag is the oldest form of cap in human civilization. Today, it needs modification to keep it pace with the time. Mithilalok endeavours to create a social revolution with an appeal to Maithils in common to protect the prestige of Mithilanchal for wearing Paag. Paags designed and developed by Mithilalok are of different shades, colours and shapes considering fitting and suitability.

PAAG AS A STATE CAP

A number of seminars, workshops etc. would be organized to appeal the people for wearing Paag. Meanwhile, a Memorandum would be submitted to the Government of Bihar to declare Paag as ‘State Cap’. This will be preceded by a slew of processions from panchayat to district headquarters to the State Capital.